कालाष्टमी (Kalashtami ) 2025
कालाष्टमी (Kalashtami) भगवान भैरव को समर्पित एक पावन तिथि है, जो हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आती है। इस दिन भक्तजन भैरव बाबा की विशेष पूजा करते हैं। यह तिथि विशेष रूप से शिवभक्तों के लिए महत्व रखती है, क्योंकि भैरव जी को भगवान शिव का रुद्र रूप माना जाता है।
कालाष्टमी का महत्व:
- भगवान भैरव को रक्षक देवता माना जाता है। वे सभी प्रकार के भय, बाधा, और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करते हैं।
- कालाष्टमी पर व्रत और पूजा करने से जीवन में आने वाली विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं।
- यह दिन तंत्र साधना, शत्रु नाश, और भैरव साधना के लिए अत्यंत शुभ होता है।
पूजा विधि:
- प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भैरव जी को सरसों का तेल, काली उड़द, काला तिल, लड्डू, नारियल और नींबू चढ़ाएं।
- “ॐ भैरवाय नमः” या “ॐ कालभैरवाय नमः” मंत्र का जाप करें।
- कुत्ते को रोटी या भोजन देना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है, क्योंकि कुत्ता भैरव जी का वाहन है।
पौराणिक कथा (संक्षेप में):
पुराणों के अनुसार एक बार ब्रह्माजी ने भगवान शिव का अपमान कर दिया, जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने क्रोध से काल भैरव का प्रकट किया। भैरव ने ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काट दिया। इस कारण उन्हें ब्रह्महत्या का दोष लगा और वह भिक्षाटन करते हुए वाराणसी पहुंचे। वहीं उन्हें इस दोष से मुक्ति मिली। तभी से काल भैरव की पूजा विशेष रूप से काशी (वाराणसी) में होती है।
अष्टमी तिथि का नाम कैसे पड़ता है?
हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव की आराधना की जाती है, इसलिए इसे कालाष्टमी कहा जाता है। साल में जो मार्गशीर्ष मास की कालाष्टमी आती है, उसे कालभैरव जयंती कहा जाता है – यह भगवान भैरव का प्राकट्य दिवस होता है।